कश्मीर की हस्तकला और हस्तशिल्प

वादि-ए-कश्मीर अगर एक तरफ अपने हुस्न के लिए दुनिया भर में मशहूर है तो दूसरी तरफ इनकी दस्तकारियाँ भी लाजवाब है। कश्मीरी हस्तशिल्प कश्मीरी लोगों और कारीगरों की एक पारंपरिक कला है जो शिल्प हाथ से बनाते है और सजाते है। कश्मीर की शाल हो, कालीन हो या फिर अखरोट की लकडी पर कारीगरी हो, सोने चाँदी का काम हो या फिर रेशम की तार द्वारा हाथों से बनी हुई चीजें हो; कश्मीर की कारीगरी की झलक और हुनर की तमाम बारीकियाँ नजर आती है। कश्मीर अपने विशिष्ट और बेहतरीन हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। इनमें से कई विकसित हुए जब श्रीनगर एक प्राचीन ट्रांस हिमालयन व्यापार मार्ग पर प्रवेश द्वार था। कश्मीर का श्रीनगर, गांदरबाल और बडगाम जिले कश्मीरी हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध और प्रमुख व्यापार केंद्र हैं।

कश्मीर की हस्तकला, कारीगरी और दस्तकारी का वास्तविक विकास सुल्तान शहाबुद्दीन के जमाने में हुआ था। सुल्तान शहाबुद्दीन ने शास्त्र, कला और दस्तकारी को बढावा देने केलिए समरकन्द, बुखारा और ताश्कन्द से कारीगर और उस्ताद बुलाए। इसके बाद यह सिलसिला सुल्तान सैनुल आबिदीन जारी रखा। उसने वादी में जगह-जगह युवाओं के अंदर विभिन्न प्रकार की हस्तकला और हस्तशिल्प के हुनर को निखारने के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोले। उस जमाने में कश्मीर मध्य एश्या में मौजूद हुनर को निखारने, संवारने और साकार बनाने के लिए उपयुक्त जगह थी। इसके अलावा कश्मीरी कारीगरों में भी विभिन्न प्रकार के हुनर को सीखने का जज्बा था।  इन वजहों से हसरत शाह हमदान, सुल्तान सैनुल आबिदीन और दूसरे शासकों और सूफी संतों की कश्मीर में हस्तकला और हस्तशिल्प को ऊंचाइयों तक ले जाने की कोशिशें कामयाब रही।

कश्मीर की शालें

कश्मीर की शालें अपनी दस्तकारी , सुंदरता और गर्मी के लिए दुनिया भर में मशहूर है। यह शालें पश्मीना और शत्रुश ऊन से बनाई जाती है और अपनी खूबसूरती, कोमलता और गर्मी में लाजवाब होती है। हर साल लाखों की तादाद में यह दूसरे देशों में बेचे जाते हैं। इस प्रकार कश्मीरी शॉल की निर्माण घाटी में रोजगार का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। ऊन और पश्मीना से बनी कश्मीरी शालें कश्मीरी हस्तकौशल का सबसे अच्छा नमूना है। खूबसूरत डिजाइन बनाने के लिए अलग-अलग डिजाइनों में डाई धागा और ताना का उपयोग करके पश्मीना शाल तैयार किया जाता है । इसी प्रकार किश्तवार के कंबल भी बहुत ज्यादा सुंदर होते हैं और इसकी अलग ही पहचान है।

पैपियर माचे


पैपियर माचे हस्तकला का एक और रूप है जिसने दुनिया के सभी क्षेत्रों से कश्मीर की व्यापक प्रशंसा की है। पेपरमाचे कश्मीर की अपनी दस्तकारी है जिस पर बाहर की दुनिया का बहुत कम असर हुआ है। ऑब्जेक्ट बनाने का प्रक्रिया बहुत लंबी और थकाऊ है।  सबसे पहले, कागज को पानी में डुबोया जाता है जब तक कि यह पूरी तरह से विघटित नहीं हो जाता।  फिर कागज को मैश किया जाता है और चिपकने वाले घोल में मिलाया जाता है।  फिर लुगदी को वांछित आकार में ढाला जाता है और सुखाया जाता है। ऑब्जेक्ट का परिव्यय अब तैयार है।  अब कारीगरों के लिए इसे रंग देने और उस पर जटिल और शानदार डिजाइन तैयार करने का समय है। इसके बाद उत्पाद को बाजार में उतारते है और बेचते है।  पैपियर माचे के सस्ते संस्करण भी हैं जो कार्डबोर्ड से बने हैं।  पेन बॉक्स, टेबल लैंप, शोपीस और अन्य सजावटी सामान पैपियर माचे से बनाए जाते हैं।   

कश्मीर की कालीन

कश्मीर की कालीन भी अपने हस्तकला, नजाकत और खूबसूरती के लिए दुनिया भर में मशहूर है। हैंड नॉटेड कालीन शुद्ध ऊन में उपलब्ध हैं और कपास और रेशम के साथ मिश्रित हैं।  पैटर्न पारंपरिक, फ़ारसी और बुखारा शैलियों के लिए सामान्य है, हालांकि जीवन के वृक्ष जैसे आलंकारिक डिजाइन तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। एक बड़े कालीन को पूरा होने में कई महीने लगते हैं और कीमत इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री के आधार पर है। रेशम की कालीन सबसे महंगी होती है।  कालीन बनाने की शुरुआती काम के बाद गाँठ को ढेर करते है और कैंची से छंटनी की जाती है। ढीले धागे को जला दिया जाता है और कालीन धोकर सुखाया जाता है।

अखरोट की लकड़ी के ऊपर खूबसूरत कलाकृतियाँ

कश्मीर में अखरोट की लकड़ी के ऊपर खूबसूरत कलाकृतियाँ भी अपने-आप में कश्मीरी कला का एक अद्भुत नमूना है। बान्दिपुरा और शोपियान इस कला के लिए मशहूर है। लकड़ी की नक्काशी जब मास्टर कलाकारों के हाथों से निकलते है तब कशमीर की कारीगरी की झलक और हुनर की तमाम बारीकियाँ नजर आती है और  विशिष्ट और बेहतरीन हस्तशिल्प बन कर उभर आती है।  इसके अलावा कश्मीर में मुख्य तौर पर बेर के वृक्ष पाए जाते हैं जिनकी पतली पतली नाजुक टहनियों से टोकरियां, कुर्सियां व अन्य सामान बनाया जाता है।

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